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"चाँद निचोड़ा / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर

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न भक्त मिला ।
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दया व नारी
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दोनों ही हारी ।
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मोहक रूप ।
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बजा माँदल
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घाटियों मे उतरे
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मेघ चंचल ।
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चढ़ी उचक
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साँझ की धूप ।
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हो गई साँझ
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धूप -वधू लजाई
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ओट हो गई ।
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ईर्ष्या की आग
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जला देती जिसको
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होता वो राख ।
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दो घूँट प्यार
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किसी का है जीवन
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दे दें जो आप ।
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तुम्हारा कल
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भला मैं क्यों पूछता
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आज हो मेरे ।
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छू लूँगा माथा
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मिटेंगे सब ताप
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मेरे हैं आप ।
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आँसू झरेंगे
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व्याकुल मन को ये
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दुखी करेंगे ।
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कब क्या देना
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ईश्वर इसे जाने
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हम न मानें ।
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दो पल मिले
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मधुर प्यार के जो
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स्वर्ग से बड़े ।
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आई जब थी
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जीवन -सांध्य -बेला
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तुम थे मिले ।
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मुझे तो भाया
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सादगी में नहाया
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रूप तुम्हारा ।
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चाँद निचोड़ा
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और दे दिया वह
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रूप तुमको ।
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उनसे गिला
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जिनसे धोखा कभी
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तुमको मिला ।
  
 
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04:42, 19 मई 2019 का अवतरण

 98
शब्दों की ओट
ये शब्द -सौदागर
देते हैं चोट ।
 99
 भटक रहा
दर-दर ईश्वर
न भक्त मिला ।
 100
अस्थि-पंजर
है भूख से व्याकुल
प्रभु के घर।
 101
भेड़ें जनता
भेड़िए पग-पग
ताक लगाए ।
 102
दया व नारी
जीवन के जुए में
दोनों ही हारी ।
104
शिशु -सी धूप
उतर रही घाटी में
मोहक रूप ।
105
 बजा माँदल
घाटियों मे उतरे
मेघ चंचल ।
106
 चढ़ी उचक
ऊँची मुँडेर पर
साँझ की धूप ।
107
 हो गई साँझ
धूप -वधू लजाई
ओट हो गई ।
108
ईर्ष्या की आग
जला देती जिसको
होता वो राख ।
109
दो घूँट प्यार
किसी का है जीवन
दे दें जो आप ।
 11 0
तुम्हारा कल
भला मैं क्यों पूछता
आज हो मेरे ।
 111
छू लूँगा माथा
मिटेंगे सब ताप
मेरे हैं आप ।
 112
आँसू झरेंगे
व्याकुल मन को ये
दुखी करेंगे ।
 113
कब क्या देना
ईश्वर इसे जाने
हम न मानें ।
 114
 दो पल मिले
मधुर प्यार के जो
स्वर्ग से बड़े ।
 115
आई जब थी
जीवन -सांध्य -बेला
तुम थे मिले ।
 116
मुझे तो भाया
सादगी में नहाया
रूप तुम्हारा ।
 117
 चाँद निचोड़ा
 और दे दिया वह
रूप तुमको ।
 118
 उनसे गिला
जिनसे धोखा कभी
तुमको मिला ।