घिरी घोर कालिमा
चाँद बहुत उदास है
रात पूनों की नहीं
नहीं तनिक उजास है
मानते हो हार क्यों
बन्द सारे द्वार क्यों
कोई द्वार खोल दो
पीर है जो, बोल दो
दीप आस के लिये
हास आसपास है ।
विषाद हवा में घुला
रूप कहाँ धुला-धुला
युगल नयन भरे-भरे
पीर पलकों पर धरे।
दर्द मुझे दान दो
अधरों की प्यास है।