भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चाँद / शमशाद इलाही अंसारी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यह ख़ूबसूरत
चमकता हुआ चाँद

इससे पहले
कि शहर की
लगातार उगती हुई इमारतें
बदरंग रोशनियाँ और धुआँ
निगल जाए इसे,

आओ -
इस चाँद को जी भर देख लें.

रचनाकाल : 28.08.1991