भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"चांदनी / अंजू शर्मा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अंजू शर्मा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKa...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
 
पंक्ति 8: पंक्ति 8:
 
<poem>
 
<poem>
 
ये शाम ये तन्हाई,
 
ये शाम ये तन्हाई,
 
 
हो रही है गगन में
 
हो रही है गगन में
 
 
दिवस की विदाई,
 
दिवस की विदाई,
 
 
जैसे ही शाम आई,
 
जैसे ही शाम आई,
 
 
मुझे याद आ गए तुम
 
मुझे याद आ गए तुम
 
 
हवा में तैरती
 
हवा में तैरती
 
 
खुशबू अनजानी सी,
 
खुशबू अनजानी सी,
 
 
कभी लगती पहचानी सी,
 
कभी लगती पहचानी सी,
 
 
कभी कहती एक कहानी सी,
 
कभी कहती एक कहानी सी,
 
 
मैं सुनने का प्रयत्न करती हूँ
 
मैं सुनने का प्रयत्न करती हूँ
 
 
और मुझे याद आ गए तुम...
 
और मुझे याद आ गए तुम...
 
 
उतर आया है चाँद गगन में,
 
उतर आया है चाँद गगन में,
 
 
मानो ढूँढ रहा है किसी को चाँद गगन में,
 
मानो ढूँढ रहा है किसी को चाँद गगन में,
  
 
मैं
 
मैं
 
 
भी सोचती हूँ,
 
भी सोचती हूँ,
 
 
पूछूं चाँद से किसी के बारे में,
 
पूछूं चाँद से किसी के बारे में,
 
 
याद करने का प्रयत्न करती हूँ,
 
याद करने का प्रयत्न करती हूँ,
 
+
और मुझे याद आ गए तुम...
और मुझे याद आ गए तुम....
+
 
+
 
महकती फिजा में
 
महकती फिजा में
 
 
बहकती सी मैं,
 
बहकती सी मैं,
 
 
धीरे से पुकारता है कोई
 
धीरे से पुकारता है कोई
 
 
कहके मुझे 'चांदनी',
 
कहके मुझे 'चांदनी',
 
 
छिटकती चांदनी में जैसे
 
छिटकती चांदनी में जैसे
 
 
बन गयी हैं सीढ़िया,
 
बन गयी हैं सीढ़िया,
 
 
मैं चढ़ने का प्रयत्न करती हूँ
 
मैं चढ़ने का प्रयत्न करती हूँ
 
+
और मुझे याद आ गए सिर्फ तुम...
और मुझे याद आ गए सिर्फ तुम....
+
 
</poem>
 
</poem>

16:18, 26 दिसम्बर 2014 के समय का अवतरण

ये शाम ये तन्हाई,
हो रही है गगन में
दिवस की विदाई,
जैसे ही शाम आई,
मुझे याद आ गए तुम
हवा में तैरती
खुशबू अनजानी सी,
कभी लगती पहचानी सी,
कभी कहती एक कहानी सी,
मैं सुनने का प्रयत्न करती हूँ
और मुझे याद आ गए तुम...
उतर आया है चाँद गगन में,
मानो ढूँढ रहा है किसी को चाँद गगन में,

मैं
भी सोचती हूँ,
पूछूं चाँद से किसी के बारे में,
याद करने का प्रयत्न करती हूँ,
और मुझे याद आ गए तुम...
महकती फिजा में
बहकती सी मैं,
धीरे से पुकारता है कोई
कहके मुझे 'चांदनी',
छिटकती चांदनी में जैसे
बन गयी हैं सीढ़िया,
मैं चढ़ने का प्रयत्न करती हूँ
और मुझे याद आ गए सिर्फ तुम...