भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चांद : दो / सांवर दइया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तदूर में काढियोड़ी
सांतरी सिक्योड़ी रोटी
ऊपर क्यूं उछाळ दी
रे मरज्याणा !

थारो कांई
तूं तो धायोड़ो गोधो है
म्हारै भूखै टाबर कानी तो
देख्यो हुतो
रे मरज्याणा !