नहीं गगन में
साथ तुम्हारे
मैं उड़ पाऊंगा
एक देविका की मूरत से
सजा रखी वेदी
मन की डोर उसी को हमने
पहले ही दे दी
नहीं तोड़ कर प्रीति किसी से
मै जुड़ पाऊंगा
फूल तुम्हारे सुर्ख दहकते
अंगारों जैसे
मौन इशारे सच मानो खत
बन्जारों जैसेे
जिस पथ पर चल दिया न उससे
अब मुड़ पाऊगा
चातक सा संकल्प एक सा
सदा सॅंजोया है
कभी नहीं विश्वास किसी का
मैने खोया है
ऐसा फल हूँ कभी न तुमसे
मैं तुड़ पाऊँगा