Last modified on 3 अगस्त 2019, at 15:41

चाय पर शत्रु-सैनिक / विहाग वैभव

उस शाम हमारे बीच किसी युद्ध का रिश्ता नही था
मैंने उसे पुकार दिया —
आओ, भीतर चले आओ, बेधड़क
अपनी बन्दूक और असलहे वहीं बाहर रख दो
आस-पड़ोस के बच्चे खेलेंगें उससे
यह बन्दूकों के भविष्य के लिए अच्छा होगा
  
वह एक बहादुर सैनिक की तरह
मेरे सामने की कुरसी पर आ बैठा
और मेरे आग्रह पर होंठों को चाय का स्वाद भेंट किया
  
मैंने कहा —
कहो, कहाँ से शुरुआत करें ?
 
उसने एक गहरी साँस ली , जैसे वह बेहद थका हुआ हो
और बोला — उसके बारे में कुछ बताओ
 
मैंने उसके चेहरे पर एक भय लटका हुआ पाया
पर नज़रअन्दाज़ किया और बोला —
 
उसका नाम समसारा है
उसकी बातें मजबूत इरादों से भरी होती हैं
उसकी आँखों में महान करुणा का अथाह जल छलकता रहता है
जब भी मैं उसे देखता हूँ
मुझे अपने पेशे से घृणा होने लगती है
 
वह ज़िन्दगी के हर लम्हे में इतनी मुलायम होती है कि
जब भी धूप भरे छत पर वह निकल जाती है नँगे पाँव
तो सूरज को गुदगुदी होने लगती है
धूप खिलखिलाने लगती है
वह दुनिया की सबसे ख़ूबसूरत पत्नियों में से एक है
  
मैंने उससे पलट पूछा —
और तुम्हारी अपनी के बारे में कुछ बताओ ...
वह अचकचा सा गया और उदास भी हुआ
उसने कुछ शब्दों को जोड़ने की कोशिश की —
  
मैं उसका नाम नहीं लेना चाहता
वह बेहद बेहूदा औरत है और बदचलन भी
जीवन का दूसरा युद्ध जीतकर जब मैं घर लौटा था
तब मैंनें पाया कि मैं उसे हार गया हूँ
वह किसी अनजाने मर्द की बाँहों में थी
यह दृश्य देखकर मेरे जंग के घाव में अचानक दर्द उठने लगा
मैं हारा हुआ और हताश महसूस करने लगा
मेरी आत्मा किसी अदृश्य आग में झुलसने लगी
युद्ध अचानक मुझे अच्छा लगने लगा था
  
मैंने उसके कन्धे पर हाथ रखा और और बोला —
नहीं मेरे दुश्मन ! ऐसे तो ठीक नहीं है
ऐसे तो वह बदचलन नहीं हो जाती
जैसे तुम्हारे सैनिक होने के लिए युद्ध ज़रूरी है
वैसे ही उसके स्त्री होने के लिए वह अनजाना लड़का
  
उसने मेरे तर्क के आगे समर्पण कर दिया
और किसी भारी दुख से सिर झुका लिया
  
मैंने विषय बदल दिया ताकि उसके सीने में
जो एक ज़हरीली गोली अभी घुसी है
उसका कोई काट मिले —
  
मैं तो विकल्पहीनता की राह चलते यहाँ पहुँचा
पर तुम सैनिक कैसे बने ?
क्या तुम बचपन से देशभक्त थे ?
 
वह इस मुलाक़ात में पहली बार हँसा
मेरे इस देशभक्त वाले प्रश्न पर
और स्मृतियों को टटोलते हुए बोला —
 
मैं एक रोज़ भूख से बेहाल अपने शहर में भटक रहा था
तभी उधर से कुछ सिपाही गुज़रे
उन्होंने मुझे कुछ अच्छे खाने और पहनने का लालच दिया
और अपने साथ उठा ले गए
  
उन्होंने मुझे हत्या करने का प्रशिक्षण दिया
हत्यारा बनाया
हमला करने का प्रशिक्षण दिया
आततायी बनाया
उन्होनें बताया कि कैसे मैं तुम्हारे जैसे दुश्मनों का सिर
उनके धड़ से उतार लूँ
पर मेरा मन दया और करुणा से न भरने पाए
  
उन्होंने मेरे चेहरे पर खून पोत दिया
कहा कि यही तुम्हारी आत्मा का रँग है
मेरे कानों में हृदयविदारक चीख़ भर दी
कहा कि यही तुम्हारे कर्तव्यों की आवाज़ है
मेरी पुतलियों पर टाँग दिया लाशों से पटी युद्ध-भूमि को
और कहा कि यही तुम्हारी आँखों का आदर्श दृश्य है
उन्होंने मुझे क्रूर होने में ही मेरे अस्तित्व की जानकारी दी
  
यह सब कहते हुए वह लगभग रो रहा था
आवाज़ में संयम लाते हुए उसने मुझसे पूछा —
और तुम किसके लिए लड़ते हो ?
  
मैं इस प्रश्न के लिए तैयार नहीं था
पर ख़ुद को स्थिर और मजबूत करते हुए कहा —
  
हम दोनों अपने राजा की हवस के लिए लड़ते हैं
हम लड़ते हैं क्यों कि हमें लड़ना ही सिखाया गया है
हम लड़ते हैं कि लड़ना हमारा रोज़गार है
  
उसने हल्की मुस्कान के साथ मेरी बात को पूरा किया —
दुनिया का हर सैनिक इसीलिए लड़ता है मेरे भाई
  
वह चाय के लिए शुक्रिया कहते हुए उठा
और दरवाज़े का रुख किया
उसे अपनी बन्दूक का ख़याल न रहा
या शायद वह जानबूझकर वहाँ छोड़ गया
बच्चों के खिलौनों के लिए
बन्दूकों के भविष्य के लिए
 
उसने आख़िरी बार मुड़कर देखा तब मैंने कहा —
मैं तुम्हें कल युद्ध में मार दूँगा
वह मुस्कुराया और जवाब दिया —
यही तो हमें सिखाया गया है ।