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चारों ओर घोर बाढ़ आई है / त्रिलोचन

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पृथ्वी गल गई है

पेड़ों की पकड़ ढीली हो गई है

आज ककरिहवा आम सो गया

सुगौवा को देखो तो

शाखा का सहारा मिला गिर कर भी बच गया

पानी ही पानी है

खेतों की मेड़ों पर दूब लहराती है

मेंढक टरटों-टरटों करते हैं

उनका स्वरयंत्र फूल आया है

बगले आ बैठे हैं जहाँ-तहाँ

मछलियाँ चढ़ी हैं ख़ूब


बौछारें खा-खा कर

दीवारें सील गईं

इनमें अब रहते भय लगता है

दक्खिन के टोले में

रामनाथ का मकान

बैठ गया

यह तो कहो पसु परानी बच गए

अब कल क्या खाएंगे

सुनते हैं, उत्तर की ओर, रामपुर में

पानी पैठ गया है

लोग ऊँची जगहों में जा-जा कर ठहरे हैं

कुछ पेड़ों पर चढ़े

इधर-उधर देखते हैं

वर्षा का तार अभी नहीं थमा

यह कैसा दुर्दिन है ।