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चारों तरफ़ जो आज यहां हो रहा है / सांवर दइया

चारों तरफ़ जो आज यहां हो रहा है।
उसे देख हर किसी का दिल रो रहा है!

जो भी आगे आया बेनक़ाब करने,
अगले ही पल यहां से गुम हो रहा है!

वे मशगूल हैं अखबारी आंकड़ों में,
बच्चा कब से दूध के लिए रो रहा है!

पहली परवाज़, नीचे गिर रहे परिंदे,
मौसम इस हद मेहरबान हो रहा है!

आज नहीं तो कल मिटेगा दौरे-जुल्म,
जिस किसी ने कहा हो, गजल-गो रहा है!