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चारों तरफ लहू का समंदर न देखिए / उपेन्द्र कुमार

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चारों तरफ लहू का समंदर न देखिए
हिंसा ने कर दिया है जो मंजर न देखिए

बाहर की ये चमक ये दमक और कुछ नहीं
ये तो लिखा हुआ है कि अंदर न देखिए

ख़ुद को संभालना कोई मुश्किल नहीं यहाँ
चल ही दिए हैं आप तो मुड़कर न देखिए

जख़्मों पे फिर नमक ही छिड़कना है क्या ज़रूर
मिल कर बिछड़ रहे हैं तो हँसकर न देखिए

संभव नहीं है आपका रहना अगर यहाँ
लालच भरी नज़र से मेरा घर न देखिए

टकरा गई नज़र तो सँभल ही न पाओगे
इस शहर में दरीचों के अन्दर न देखिए