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चार-चर्मकार / कुमार मुकुल

जन चार
भार (मृत मवेशी) लिए कंधों पर जा रहे
हिम्‍मत सबकी
हो रही तार-तार

मृत्‍यु का बोझ
हो रहा भार है
त्‍याग दें भार तो
जीना दुश्‍वार है।