Last modified on 12 सितम्बर 2008, at 12:47

चार सौ विवाह और दो अन्तिम संस्कार / गिरिराज किराडू

210.212.103.210 (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 12:47, 12 सितम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: कैसे देखते होंगे दो शव उन चार सौ विवाह उत्सवों को जिनकी रौनक के बी...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कैसे देखते होंगे दो शव उन चार सौ विवाह उत्सवों को जिनकी रौनक के बीच से

गुजर कर उन्हें शमशान तक पहुंचाना है। कैसे देखती होंगी पान की दुकानें शवों और

दूल्हों को एक दूसरे के पास से होकर गुजरते हुये।


दोराहों,तिराहों,चौराहों की तरह कुछ ऐसी ही जगहें इस नगर में हैं जिनमें दसों दिशाओं से

आकर खुलता और सिमटता है संसार। उनमें से आठ विवाह और दो से अन्तिम संस्कार की यात्राएं

बीचों बीच बने चबूतरे की ओर बढ़ रही हों तो शव और पान की दुकानें ही कोई भी अचानक

फंस सकता है इस खतरनाक प्रश्न की जकड़ में कि वह किस यात्रा में है।


मातम गुनगुना रहे कवियों के बीच कभी उम्मीद और कभी विलाप की तरह सुनाई देती है तुम्हारी आवाज।