Last modified on 26 जुलाई 2011, at 14:55

चालाकी / अरविन्द श्रीवास्तव

कंपकपाती ठंढ में आग की बोरसी
दहकती गर्मी में
ताड़ के पंखे
और अंधेरे में लालटेन हैं मेरे पास

लाता हूँ रोज़-रोज़ चोकर-खुद्दी
खिलाता हूँ साग-पात
धर में बकरियों-सी बेटियों को
गाय-सी पत्नी
और घोड़े-से बेटे को

और क्या कर सकता है चालाकी
एक अस्तबल का
फटीचर साईस!