भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चिट्ठी / शिवशंकर मिश्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

--बहुत दिनों से तुम्हारी चिट्ठी नहीं मिली।
इतनी दूर हो, ध्यान लगा रहता है।
बच्चे कैसे हैं ? बहू की
कमर का दर्द अब कैसा है ?
अपनी देह का ध्यान रखना।
मेरी चिंता मत करना।

--तुम्हारी ही चिंता मुझे लगी रहती है माँ!
कैसे बीतता होगा तुम्हारा समय?
 कैसे क्या करती होगी?
देखने वाला भी है कोई गाँव में वहाँ?
सभी भाई हम दूर- दूर, जहाँ- तहाँ
बिखरे- बसे
उलझे- फँसे..
कौन क्या- करे कैसे?
डर लगा रहता है तुम्हारा ही...
बच गयीं पिछली बार, और क्या?
लेकिन इस बार का यह जाड़ा?
हाल-चाल की चिट्ठी देते रहना।