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चिड़कल्यां / मुकुट मणिराज

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घणी स्याणी छै, ये-
न्हं झांकै कोई कै मूंडै
सुख-दुख बांटबा कांण।
खुद को ढांक्यो खुद उघाड़ै, अर
खुद को धोयो खुद निचोवै छै-
बापड्यां चिड़कल्यां

कोई न्हं समेटै यांको संताप, अर
कोई न्हं भरै यां की सोक-मोख में
झूंठी-सांची आह।

कोई कागलो न्हं सेवै यां का अंडा।
कागलो। अक्कल सूं बोइयां मरतो-
कोयल को गुलाम/बैरी छै पक्को-
बापड्यां चिड़कल्यां को।

हे ढूंड’र फोड़ दे छै, अभागण्यां का
अंडा।
घणी सबरदार छै चिड़कल्यां,
छानै-छानै रौ ले छै-दो आंसू।
धरती को करसाण जद सूखी आंख्यां ताकै छै
नील गगन में, बरखा कांण, तौ
सूण मनावै छै चिड़कल्यां।
धूळ में न्हावै छै चिड़कल्यां।
जद खेत ओढले छै धानी चूनड़, अर
बीजाळो होबा लागै छै धान, तौ
जसन मनावै छै, गीत गावै छै चिड़कल्या,
यूं घणो छोटो छै पेट चिड़कल्यां को-
कागलां सूं, पण फेर भी
घाणी मुस्कालां सूं, भरै छै, नुंगरो।

उग्यां सूं ले’र आंथ्यां तांईं
केई कोस नाप’र, अेक-अेक दाणो बीण’र
करच्यो-करच्यो ओरै छै, ओजड़ी की घट्टी में,
नीम-नीम को।

कागलो? कागलो अेक बार में ई डकार ले छै
दस, बीस अर पचास दाणा, अर कै
कुसकाले छै टाबरां का हाथां सूं
चुपड़ी रोट्यां, न्हं, तौ खालै छै अंडा-बच्चा
चिड़कल्यां का अर मिटां में भर ले छै
हांडा हेसो पेट।
लागर्यो छै मूंडै, ओछो हराम।
यूं तो भरबा में छै भांडो, कागलां का
पाप को, पण कांई दम छै फोड़बा की
चिड़कली का जाया में।
चिड़कल्यां। जूगां सूं पीती आरी छै
अपणा आंसू, अर हूमती आरी छै अपणो खून
कागलां का धूपाड़ा में।
घणा छै बैरी चिड़कल्यां का।

उपदेस देर्या छै-‘बिलाव’
‘होवई वही जो राम रचि राखा’ अर कै
‘अजगर करै न चाकरी.....।’ पण
कुणको भरोसो करै चिड़कल्यां।
सो-सो बार मटार दे छै/बण्या-बणाया
घुसाळा, घर की धर्याणी, पण
सारा छळ-कपट सूं बेखबर छै ये
भोळी चिड़कल्यां। दो निसास पटक’र
फेर बणाले छै पूस को घूसाळो।

घूसाळो ? अेक-अेक तिनको बीण’र
गूंथै छै, घर, पण ईं में तौ कौरा ‘जापा’
जणै छै चिडकल्यां। बांकी नीद
मौताज छै, घुसाळां की।
बैरी बार-बार उजाड़ दे छै यां का घुसाळा
चिड़कल्यां की पांती तौ अर्यो छै
रोेेज रोज नुया घुसाळा बणाबो अर कै-
मार लै छै माथो रूंखड़ां का झुरमुटां में
आज अठै तौ का’ल बठै।
नींद तौ आवै छै या की आंख्यां में। पण
दिन मे कागला अर रात में बिलाव ? बाप रे
कोसां दूरै हो जावै छै नींद, आंख्यां सूं चिड़कल्यां कै।
चमक नींद सोवै छै चिड़कल्यां /न्हं तौ
पल में बिगड़ जावै छै/सारा चितराम।
मातम मनावै छै चिड़कल्यां/पण रोबा अर
हांसबा कां’ा यांकै पास कोईनै
नाळी-नाळी भाषा।
म्हनै लागै छै हाल/जुगां तांई न्हं कर सकैगी
कागलां सूं सामनो, नादान भोळी, ये चिड़कल्यां।