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चिड़ियाघर / त्रिलोक सिंह ठकुरेला

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चिड़ियाघर देखने शहर में
नन्हा सोनू ­ आया।
उसे पिता ने बड़े प्यार से,
केला एक दिलाया॥

रंग ­बिरंगी चिड़िया देखी,
देखा मोटू हाथी।
हिरण देख कर सोचा मन में,
खेलूँ बन कर साथी॥

षेर और चीता जब देखा,
तब थोड़ा घबराया।
मोर और बत्तखों ने उसके
मन को खूब लुभाया॥

पर सानू जब लगा देखने,
बन्दर खड़ा अकेला।
दाँत दिखाता आया बन्दर,
छीन ले गया केला॥