http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%9A%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A4%9A%E0%A5%8B%E0%A4%B0%E0%A4%AC%E0%A4%BE_%E0%A4%86%E0%A4%9C_%E0%A4%AC%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%B9%E0%A5%8C%E0%A4%B2%E0%A4%A8%E0%A4%BF_%E0%A4%B9%E0%A5%87_/_%E0%A4%85%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BE_%E0%A4%B2%E0%A5%8B%E0%A4%95%E0%A4%97%E0%A5%80%E0%A4%A4&feed=atom&action=historyचितचोरबा आज बन्हौलनि हे / अंगिका लोकगीत - अवतरण इतिहास2024-03-28T09:44:28Zविकि पर उपलब्ध इस पृष्ठ का अवतरण इतिहासMediaWiki 1.24.1http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%9A%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A4%9A%E0%A5%8B%E0%A4%B0%E0%A4%AC%E0%A4%BE_%E0%A4%86%E0%A4%9C_%E0%A4%AC%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%B9%E0%A5%8C%E0%A4%B2%E0%A4%A8%E0%A4%BF_%E0%A4%B9%E0%A5%87_/_%E0%A4%85%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BE_%E0%A4%B2%E0%A5%8B%E0%A4%95%E0%A4%97%E0%A5%80%E0%A4%A4&diff=225664&oldid=prevLalit Kumar: '{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |रचनाकार=अज्ञात }} {{KKCatAngikaRachna}} <poem> दुलहे को प्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया2017-04-28T10:05:55Z<p>'{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |रचनाकार=अज्ञात }} {{KKCatAngikaRachna}} <poem> दुलहे को प्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
<p><b>नया पृष्ठ</b></p><div>{{KKGlobal}}<br />
{{KKLokRachna<br />
|रचनाकार=अज्ञात<br />
}}<br />
{{KKCatAngikaRachna}}<br />
<poem><br />
दुलहे को प्रेम-बंधन में बाँधकर उसकी शान और गुमान गँवाने तथा उसकी सुंदरता का वर्णन प्रस्तुत गीत में हुआ है। सोने के ओखल में माणिक के मूसल से आठ चोट से निकाले हुए चावल को कंगन में बाँधने का भी उल्लेख है। ओठंगर की विधि दुलहे के अतिरिक्त सात व्यक्तियों द्वारा मूसल पकड़कर ओखल में लगन के धान को कूटकर सम्पन्न की जाती है।<br />
<br />
चितचोरबा आज बन्हौलनि<ref>बँधाया</ref> हे, सान गुमान गमोलनि<ref>गँवाया</ref> हे।<br />
ओहि चितचोरबा के सिर आले मौरिया हे, मौरिया छबि छहरौलनि<ref>छिटकाया</ref> हे॥1॥<br />
ओहि चितचोरबा के लाले लाले अँखिया हे, भँवरा गुँजरै लिलरबा हे।<br />
ओहि चितचोरबा के लाले लाले ठोरबा<ref>ठोर; ओष्ठ</ref> हे, काट करेजवा लगौलनि हे॥2॥<br />
ओहि चितचोरबा के बान्हो आठो अँगवा हे, कसिकै<ref>कसकर</ref> बान्हो ओहि डोरबा<ref>डोरे से; तागे से</ref> हे।<br />
सोने के ओखरि मानिक मुसरबा हे, आठ चोटे कुटाहो अठौंगरा हे॥3॥<br />
ओहे रे चाउर केरा बान्हो सुभ कँगना हे, सिया पेयारी के बरबा कहोलनि<ref>कहलाये</ref> हे॥4॥<br />
</poem><br />
{{KKMeaning}}</div>Lalit Kumar