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चिता के नजदीक / नरेश अग्रवाल

वह धीरे-धीरे करके
पचासों मौत देख चुका था
जब भी किसी की मौत होती
सारे क्रिया कम॔ का भार
होता था उसी के कन्धोंर पर
और वह सब कुछ
चुपचाप करता चला जाता था,
होता था वही चिता के सबसे नजदीक
धूप और घी समर्पित करता हुआ
दूर से केवल उसकी पीठ दिखाई देती थी
और चेहरा आग की तरह चकमता हुआ
जब सामने की ओर वह अपना सिर घुमाता
घूरता हुआ सभी को
उसमें मृतक की थोड़ी सी आभा दिखाई देती थी
कुछ एक क्षणों के लिए
उसके चेहरे पर
और इसके साथ ही
बढ़ जाता था वह घर की ओर
शांत और चुपचाप
एक खामोशी को लादे हुए
जैसे राख पर पानी छिड़ककर
चला गया हो ।