Last modified on 6 मई 2008, at 02:25

चिर सुरत कर केलि श्रमश्लथ... / कालिदास

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:25, 6 मई 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKAnooditRachna |रचनाकार=कालिदास |संग्रह=ऋतुसंहार‍ / कालिदास }} Category:संस्कृत :...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: कालिदास  » संग्रह: ऋतुसंहार‍
»  चिर सुरत कर केलि श्रमश्लथ...
लो प्रिये हेमन्त आया!

चिर सुरत कर केलि श्रमश्लथ

शिथिल सालस गात अपने

स्फुरित जंघा औ" स्तनों से

पुलक मुखरित हर्ष अपने

तैल अंगों पर लगातीं

स्निग्ध करतीं हेमकाया,
लो प्रिये हेमन्त आया!