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"चीज़ क्या हूँ जो करें क़त्ल वो अँखियाँ मुझको / सौदा" के अवतरणों में अंतर

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पर कभू मैं न कहा उससे कि दौराँ<ref>ऐ ज़माने</ref>, मुझको
 
पर कभू मैं न कहा उससे कि दौराँ<ref>ऐ ज़माने</ref>, मुझको
  
किसकी मिल्लत में गिनूँ मैं आपको बतला ऐ शैख़
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किसकी मिल्लत में गिनूँ आपको बतला ऐ शैख़
 
तू मुझे गब्र<ref>क़ाफ़िर</ref> कहे, गब्र मुसलमाँ मुझको
 
तू मुझे गब्र<ref>क़ाफ़िर</ref> कहे, गब्र मुसलमाँ मुझको
  

22:22, 27 फ़रवरी 2009 के समय का अवतरण

चीज़ क्या हूँ जो करें क़त्ल वो अँखियाँ मुझको
फिर गये देख के मुँह ख़ंज़रे-मिज़गाँ<ref>भवों के ख़ंजर</ref>मुझको

सैर करता है ख़याल उसकी निगह का जीधर<ref>जिधर</ref>
नज़र आते हैं उधर गंजे-शहीदाँ<ref>शहीदों के ढेर</ref> मुझको

गुलो-गुल्ज़ार तरह्हुम हों<ref>रहम कर रहे हों</ref> किसी के सर पर
जा<ref>जगह</ref> ख़ुश आती<ref>पसंद आना</ref> नहीं जुज़-गोरे-ग़रीबाँ<ref>परदेसियों के क़ब्रों के अतिरिक्त</ref> मुझको

क़ता
ऐ नसीमे-सहरी<ref>सुबह की ताज़ी हवा</ref>, मेहरो-मुरव्वत से दूर
बेनिहायत नज़र आया ये गुलिस्ताँ मुझको
एक गुल तक मिरे मानअ न हुआ चलते वक़्त<ref>चलते समय मुझको एक फूल तक ने जाने से मना नहीं किया</ref>
ख़ार ने भी न रखा ख़ैच के दामाँ मुझको
एक आलम को ज़माने ने दिया क्या-क्या कुछ
पर कभू मैं न कहा उससे कि दौराँ<ref>ऐ ज़माने</ref>, मुझको

किसकी मिल्लत में गिनूँ आपको बतला ऐ शैख़
तू मुझे गब्र<ref>क़ाफ़िर</ref> कहे, गब्र मुसलमाँ मुझको

रेख़्ता<ref>पुरानी उर्दू</ref> और भी दुनिया में रहे ऐ 'सौदा'
जीने देवे जो कभू काविशे-दौराँ<ref>ज़माने की मुसीबत</ref> मुझको

शब्दार्थ
<references/>