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चुक गए बादल / महेश उपाध्याय

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तालियों की गड़गड़ाहट से
चिपड़ कर रोटियाँ
चुक गए बादल बरस कर
                     चुक गए

समय के चालाक जादूगर
फुनगियों के कान पर मुँह धर
फुसफुसाते शब्द
जिनके कमर कन्धे झुक गए
                        चुक गए

अब न इनमें नीर, इनमें दम
बेचकर आवाज़ की छम-छम
पीटकर ख़ाली कनस्तर
चार दिन में लुक गए
चुक गए
बादल बरस कर चुक गए