भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चुनमुन बचपन / मनोज श्रीवास्तव

Kavita Kosh से
Dr. Manoj Srivastav (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:56, 25 जून 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= मनोज श्रीवास्तव |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> '''चुनमुन बच…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चुनमुन बचपन
 
दर्पण से बाहर
मैं हूं मनहर,
दर्पण से बाहर
संजोए हुए हूं
मन के कोने में
चुनमुन बचपन
 
मन के जिस कोने
बैठा है बचपन
औंधे मुंह
किलक-किलक
विहंस-विहंस
धूप और बारिश से
हवा और आतिश से
निरापद, निस्संकोच,
खेल रहा है
कंचा-गोली
डण्डा और गुल्ली
लुका-छिपी
संग बच्चे-हमजोली
करते अठखेली.