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चुनावी रंगे की रंगतै न्यारी / गिरीश चंद्र तिबाडी 'गिर्दा'

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चुनावी रंगे की रंगतै न्यारी,
मेरि बारी! मेरि बारी!! मेरि बारी!!!
दिल्ली बै छुटि गे पिचकारी,
अब पधान गिरी की छू हमरी बारी,
चुनावी रंगे की रंगतै न्यारी।
मथुरा की लठमार होलि के देखन्छा,
घर-घर मची रै लठमारी,
मेरि बारी! मेरि बारी!! मेरि बारी!!!

आफी बण नैग, आफी बड़ा पैग,
आफी बड़ा ख्वार में छापरि धरी,
आब पधानगिरी छू हमरि बारि।
बिन बाज बाजियै नाचि गै नौताड़,
खई पड़ी छोड़नी किलक्यारी,
आब पधानगिरी की छू हमरि बारी।
रैली थैली, नोट-भोटनैकि,
मची रै छो मारामारी,
मेरि बारी! मेरि बारी!! मेरि बारी!!!

पांच साल तक कान-आंगुल खित,
करनै रै हूं हु,हुमणै चारी,
मेरि बारी! मेरि बारी!! मेरि बारी!!!
काटि में उताणा का लै काम नि ऎ जो,
भोट मांगण हुणी भै ठाड़ी,
मेरि बारी! मेरि बारी!! मेरि बारी!!!

पाणि है पताल, ऎल नौणि है चुपाड़,
मसिणी कताई बोल-बोल प्यारी,
चुनाव रंगे की रंगतै न्यारी।
जो पुजौं दिल्ली, जो फुकौं चुल्ली,
जैंकि चलैंछ किटकन दारी,
चुनाव रंगे की रंगते न्यारी,
मेरि बारी! मेरि बारी!! मेरि बारी!!!
चुनाव रंगे की रंगते न्यारी।