भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चुनाव / राजकिशोर सिंह

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:18, 7 दिसम्बर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजकिशोर सिंह |अनुवादक= |संग्रह=श...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गाड़ियाँ बड़ी-बड़ी लगने लगीं
गरीब मजदूर और लाचारों के द्वार
बाहुबलियों की हथेली जुड़ने लगीं
गरीब मजदूर और लाचारों के द्वार
जातियों की चर्चा होने लगीं
गरीब मजदूर और लाचारों के द्वार
जानो चुनाव आ गया
वादों की बारिश होने लगीं
गरीब मजदूर और लाचारों के द्वार
शराब की गंध् आने लगीं
गरीब मजदूर और लाचारों के द्वार
कामगारों को गालियाँ पड़ने लगीं
गरीब मजदूर और लाचारों के द्वार
जानो चुनाव आ गया

मध्य रात्रि में गोलियाँ चलने लगीं
गरीब मजदूर और लाचारों के द्वार
रात में रुपये की थैली बँटने लगीं
गरीब मजदूर और लाचारों के द्वार
अँध्ेरे में बस्तियाँ उजड़ने लगीं
गरीब मजदूर और लाचारों के द्वार
तो जानों चुनाव की रात आ गयी
अहले सुबह मतपर्ची बँटने लगीं
गरीब मजदूर और लाचारों के द्वार
रंगबाजों को पुलिस ऽदेड़ने लगीं
गरीब मजदूर और लाचारों के द्वार
बदमाशों को लाज लगने लगीं
गरीब मजदूर और लाचारों के द्वार
तो जानो चुनाव का दिन आ गया।