चुपके से कहूँगा मैं वह सच्ची बात
चूँकि समय नहीं आया अभी उसे कहने का
बाद में मिलेगा बड़े अनुभव के साथ
वह खुला आकाश मन करे जहाँ रहने का
इस अस्थाई पापमोचक आकाश के नीचे
प्रायः हम सभी भूल जाते हैं यह बात
सुखद अम्बर वही जो जीवन को सींचे
जहाँ खुला घर हो, जिसमें रहें सब दिन-रात
9 मार्च 1937, वरोनिझ़