Last modified on 6 मार्च 2018, at 12:05

चुप्पा कवि / सीमा संगसार

शब्द खामोश नहीं होते
उनके स्वर और मात्राएँ
मिलकर बनाते हैं
हमेशा ही नई कोई व्यंजना!

एक कवि
कभी चुप नहीं बैठता
चुप्पा कवि
दरअसल
चढ़ा रहा होता है
अपनी कविता पर शान...

बाज समय के
क्रूर अहसासों को
फड़ङ़ाते हुए वह
समेट रहा होता है
चंद उबलते हुए हालात को
जिनके गर्म लहू के छींटे
यदा-कदा
गिरते रहते हैं
उसके बदन पर
और वह
और तेज / और तेज
करता जाता है
अपनी धार को
और भी पैना
बिन कहे
चुपचाप...