Last modified on 17 सितम्बर 2018, at 19:11

चुप्पी / मंजूषा मन

उस चुप्पी में भी
गजब का शोर है
जिसे बनाया हथियार
लड़ने
तुम्हारे अत्याचारों से,

थप्पड़ की झन्नाटेदार गूंज
इसके प्रतिनद में
उभरी नहीं कोई सिसकी।

किसी सन्नाटे भरी रात को
फेंक दी गई सजी थाली
शोर करती है ठनठानाकर,
तब भी ओढ़ लेती है
मौन।

आँखों मे उभरी दर्द की लकीर
आवाज नहीं करती
वो हवा है वातावरण में फैली
किसी दिन
फट पड़ेगी दबते दबते
मिटा देगी तुम्हें
शोर सहित।