Last modified on 14 जुलाई 2019, at 16:44

चुप -चुप चिड़िया रानी / अनामिका सिंह 'अना'

Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:44, 14 जुलाई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनामिका सिंह 'अना' |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

चुप-चुप दिखते कौए सारे, चुप-चुप चिड़िया रानी।
ठूँठ हो गए बरगद पीपल, गया रसातल पानी॥

जहाँ-तहाँ कंक्रीट उगा है, वृक्ष हो गये बौने।
बेबस खोज रहे हरियाली, नित पशुओं के छौने॥
उभरी रेती सरिता तल की, तड़पे मछली रानी।
ठूँठ हो गए बरगद पीपल, गया रसातल पानी॥

धुआँ-धुआँ-सी हुई ज़िंदगी, हुआ धुआँ जग सारा।
भरी फेफड़ों में है कालिख, गया शीर्ष पर पारा॥
फिर भी सोयी है अवाम क्यों, होती है हैरानी।
ठूँठ हो गए बरगद पीपल, गया रसातल पानी॥

कहीं अधिकता जल प्लावन की, पड़े कहीं पर सूखा।
प्रकृति संग खिलवाड़ किया नित, मानव बिलखे भूखा॥
पर्यावरण बिगाड़ा हमने, कौन हमारा सानी।
ठूँठ हो गये बरगद पीपल, गया रसातल पानी॥

जाग-जाग रे सोते मानव, आ कुछ पौधे रोंपें।
आने वाली संतति को हम, नहीं कटारें घोंपें॥
जो बोयेगा वही कटेगा, मत कर अब मनमानी।
ठूँठ हो गए बरगद पीपल, गया रसातल पानी॥

जल बिन जीवन तपता मरुथल, तथ्यसभी यह जानें।
प्राणदायिनी घटक जगत का, मोल नहीं पहचानें॥
विनत 'अना' कहती कर जोडे़, तज दो कारस्तानी।
ठूँठ हो गये बरगद पीपल, गया रसातल पानी॥

संरक्षित करने का प्रण लें, जल का सीकर-सीकर।
तभी श्वास ले पाये संतति, भावी मृदु जल पीकर॥
लघु प्रयास से संभव मानव, मत कर आना-कानी।
ठूँठ हो गये बरगद पीपल, गया रसातल पानी॥