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चूमा था भाल / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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चूमा था भाल
खिले नैनों के ताल
चूमे नयन
विलीन हुई पीर
चूमे कपोल
था बिखरा अबीर
भीगे अधर
पीकर मधुमास
चूमे अधर
खिला था रोम रोम
खुशबू उड़ी
भरा मन आकाश
कसे तुमने
थे जब बाहुपाश
तन वीणा के
बज उठे थे तार
कण्ठ से गूँजा
प्यार का सामगान
कानों में घोला
मादक मधुरस
तुम जो मिले
ताप भरे दिन में
धरा से नभ
खिले सौ-सौ वसन्त।
कामना यही-
हो पूर्ण ये मिलन
पुलकें तन -मन।
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