भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चूहे को निमंत्रण / बालस्वरूप राही

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चूहे राजा, आ जा, आ जा,
घी से चुपड़ी रोटी खा जा,
मैंने चूहेदान लगाया,
तरह-तरह का माल सजाया।

तूने मुझे बड़ा सताया,
किशमिश खाई, काजू खाया
मूँगफली का किया सफाया,
फिर भी तुझ को चैन न आया !

चढ़ा मेज-कुर्सी पर मेरी,
चीजें कुतर लगा दीं ढेरी,
कई पुस्तके रद्दी कर दीं,
कई कापियाँ भद्दी कर दीं।

तुझ से अपनी जान बचाने,
किसी तरह से तुझे भगाने,
ले आया मैं पुसी रानी,
कहलाती जो चूहेखानी।

रात-रात भर घात लगाई,
लेकिन उसने मुँह की खाई,
तू निकला उस्ताद पुराना,
बिल्ली से भी अधिक सयाना।

किसी तरह जब पार न पाया,
थककर चूहेदान लगाया,
अब तेरा बचना है मुश्किल,
बाहर निकल छोड़ अपना बिल!