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चेतें-चेतें रे अभिमानी / रामधारी सिंह 'काव्यतीर्थ'

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चेतें-चेतें रे अभिमानी काल खड़ा सिरहौना में॥टेक॥
की लेॅकेॅ आइलें की लेॅ केॅ जैवें मनों में फीकर नै करै छैं
सत्संगत से दूर भागै छैं हरदम पाप कमावै छैं
भूललोॅ छैं दुनियादारी में छोड़ेॅ होतौ पलभर में॥1॥

प्रभु पानी सें पिंड बनेलकौ नौ मास गरभ में वास करलें
तभियो तोंय नै सौच्हैं मूरख, वहाँ के प्रतिपाल करै छै
कहाँ सें अइलें कहाँ केॅ जैभें तनियो नै चिंता छौं मन में॥2॥

भोरे उठिकेॅ राम कहै छैं, राम कहाँ छै नै जानेॅ
बिना सद्गुरू उपदेश जगत में, मूरख वोकरा नै मानेॅ
पाप-पुण्य के डोॅर नै राखेॅ रहै छै हाड़ चवावै में॥3॥

मानुष तन पाय विषय बितैल्हें नाम के टिकट खरीदलैं नै
घुमी-घुमी ‘सतपाल’ जी पुकारै तैय्यो नींद टुटल्हौं नै
गुरू कहै छै नाम बिना तोंय जैभें चौरासी में॥4॥