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चे-ग्वेरा की अन्तिम यात्रा / विसेण्टे अलेयखान्द्रे / राजेश चन्द्र

कौन
हिलाता है
मरु
छायाओं को ?

हवाएँ धधकती हैं ।
चान्द
लाल-भभूका,
प्रसिद्ध
रात
प्रकाशहीन अब भी
अपलक दृष्टि
अन्तिम है ।
सुन्दर हैं आँखें,
चेहरा ।

निद्रामग्न
वह बहता है
निर्मल से होकर
ले जाता हुआ विस्तार को
कितना विस्तृत और सुदीर्घ...!

अँग्रेज़ी से अनुवाद : राजेश चन्द्र