http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%9A%E0%A5%8B%E0%A4%B0_%E0%A4%95%E0%A5%87_%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A4%BF_/_%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%9F_%E0%A4%AC%E0%A4%BF%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%80_%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%9C&feed=atom&action=historyचोर के प्रति / मुकुट बिहारी सरोज - अवतरण इतिहास2024-03-28T20:08:53Zविकि पर उपलब्ध इस पृष्ठ का अवतरण इतिहासMediaWiki 1.24.1http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%9A%E0%A5%8B%E0%A4%B0_%E0%A4%95%E0%A5%87_%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A4%BF_/_%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%9F_%E0%A4%AC%E0%A4%BF%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%80_%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%9C&diff=175812&oldid=prevअनिल जनविजय: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मुकुट बिहारी सरोज |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पन्ना बनाया2014-05-26T18:00:50Z<p>'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मुकुट बिहारी सरोज |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पन्ना बनाया</p>
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|अनुवादक=<br />
|संग्रह=<br />
}}<br />
{{KKCatKavita}}<br />
<poem><br />
चोरी कर ले गया बावरे अपने कवि की, पीड़ित कवि की<br />
ऐसे कवि की जिसने तेरा दर्द गीत के स्वर में गाया <br />
जिसकी भरी जवानी में भी स्वप्न एक रंगीन न आया ।<br />
<br />
जिसने चोरी कभी नहीं की तेरे जलते अरमानों से<br />
जिसने मुँह न चुराया अब तक, दुखियों के गीले गानो से <br />
ऐसे कवि की कुटिया में घुसते, लज्जा तो आई होगी<br />
कदम-कदम पर दबी-ढँकी बैठी विपन्नता तुझे देख कर<br />
बेचारी बेहद शरमाई तो होगी ।<br />
<br />
छूते छूते मेरा आँसू भरा खजाना एक बार रोया तो होगा<br />
तय है तेरे हाथों में आते ही सपना हिलकी भर-भर रोया होगा ।<br />
<br />
लेकिन तू नासमझ अर्थ का दीवाना क्या लोभी निकला<br />
कवि की चोरी करते-करते तेरा अन्तस ज़रा न पिघला<br />
और न गिरते गिरते सम्हला कुटिया को तो देख लिया होता ओ पापी !<br />
दीवारों का मौन, फर्श की पहिचानी-सी घिरी उदासी<br />
लेकिन तू तो पत्थर निकला और न गिरते-गिरते सम्हला ।<br />
<br />
क्योंकि अबोध दुधमुँहों के तू आँसू पीकर आया होगा<br />
अधनंगी पत्नी के घावों को खुद सी कर आया होगा<br />
<br />
तू तो आता नहीं मगर जठराग्नि तुझे ले आई होगी.<br />
भूख तुझे ले आई होगी, प्यास तुझे ले आई होगी ।<br />
तेरे अरमानो का धारक सोने की लंका में होगा<br />
स्वर्ग-नरक के दो पाटों के बीच बड़ी शंका में होगा<br />
<br />
सम्भव है तेरे जीवन की पहली-पहली चोरी होगी <br />
दृढ़ता से कह सकता हूँ मैं इससे पहले तेरी बुद्दि अछूती होगी, कोरी होगी ।<br />
<br />
इससे पहले तू रामायण झूम-झूम कर गाता होगा<br />
मन्दिर-मन्दिर में जा-जाकर अपनी व्यथा सुनाता होगा<br />
सन्तोषो से अपनी अग्नि बुझाता होगा ।<br />
<br />
कुछ भी हो पर तेरा निश्चय बहुत बुरा था, बुरा किया है<br />
तूने अपने ही जनकवि की मस्ती तक को चुरा लिया है<br />
इतना तो विश्वास किया होता तूने मेरी कविता पर<br />
मैं लिखवा लेता मुक्त हँसी के छन्द आँसुओं की सरिता पर<br />
<br />
आज नहीं तो कल सपनों को नंगे पैरों आना होगा<br />
जो कुछ भी रच देता है वह इन्सानों को गाना होगा<br />
लेकिन तूने अपने कवि को आकाशी माया ही जाना<br />
बिलकुल ही झूठा अनुमाना ।<br />
<br />
तूने ही मजबूर कर दिया मैं अब तुझको एक लुटेरा-लम्पट कह दूँ<br />
तूने ही मजबूर कर दिया मैं तुझको अब एक छिछोरा-कायर कह दूँ<br />
अपने पर तो थोड़ा-सा विश्वास किया होता ओ पागल<br />
मेरे बदले तू ही लेता देख धरा की छाती घायल<br />
<br />
मर्दानों की तरह बदलता अपने दोहन की गाथाएँ<br />
विद्रोही की तरह निकलता बाँहों में लेकर ज्वालाएँ<br />
इतना ही तो होता तू मर जाता लड़ते-लड़ते रण में<br />
लेकिन तेरा रक्त जगा जाता ज्वालामुखी धरती के सोये कण-कण में<br />
<br />
कोई कहता मुक्ति-दूत था कोई कहता वह सपूत था<br />
कितना प्यारा दिन होता जब दीवानों की टोली तुझको शीश झुकाती<br />
आने वाली पीढ़ी तुझ पर फूल चढ़ाती<br />
<br />
लेकिन आज कलंकित कर दी पौरुष की वज्रों सी छाती<br />
तूने आज बुझा डाली है अपने कर से अपनी बाती<br />
अंधियारी के आशिक़ ! मेरा दीप बुझाना नहीं सरल था<br />
उसमे नेह नाम को ही था उसमे बेहद भरा गरल था ।<br />
<br />
अच्छा किया पीर दे डाली और लबालब कर दी प्याली<br />
लेकिन ज़रा देख भी लेना चुपके-चुपके पीछे-पीछे<br />
मैं तूफ़ान बना चलता हूँ या चलता हूँ आँखे मीचे<br />
</poem></div>अनिल जनविजय