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"चौथ चन्दा गीत / भोजपुरी" के अवतरणों में अंतर

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18:12, 13 जुलाई 2008 का अवतरण

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

चौथ (भाद्र शुदी चौथ) के दिन गणेश-पूजा के दिन स्कूली बच्चों द्वारा गाया जाने वाला चौथ चंदा गीत। भाद्रसुदी चौथ को स्कूली बच्चे गुरूजी के साथ समूह में प्रत्येक विद्यार्थी के घर लकड़ा बजाते और इन गीतों को गाते हुए जाते हैं। विद्यार्थी के माता-पिता विदाई में अन्न, वस्त्र और द्रव्य देते हैं, उसे लाकर स्कूल में जमा किया जाता है, वस्त्र गुरूजी को दे दिया जाता है; अन्न-द्रव्य से स्कूल में भोज का आयोजन होता है, जिसमें गुरूजी के साथ सभी बच्चे भाग लेते हैं। यह प्रथा अब गाँव के स्कूलों में दिखाई नहीं पड़ती।

१.
खेलत खेलत एक कउड़ी पवनी
उ कउड़ी गंगा दहवऽली
गंगा मुझको बालू दिया, उ बालू गोड़िनिया लिया।
गोड़िनिया मुझको भार दिया, उ भार घसवहा लिया।
घसवहा मुझको घास दिया, उ घास गैया लिया।
गइया मुझको दूध दिया, उ दूध बिलैया लिया।
बिलइया मुझको चूहा दिया, उ चूहा चिल्होरिया लिया।
चिल्होरिया मुझको पाँख दिया, उ पाँख राजा लिया।
राजा मुझको घोड़ा दिया।

२.
रामजी चले लछुमनजी चले, महावीरजी चले, लंका दाहन को।
तैंतीस कोट प्रदुम्न चले, जैसे मेघ चले बरिसावन को।
का करिहें उत्पात के नन्दन, का करिहें तपसी दोनों भइया।
मार दिहें उत्पात के नन्दन, काटि दिहें तपसी दोनों भइया।

३.
सूर्यकुल वंशवा में जन्म लिहले रामचन्द्र,
कोशिला के कोख अवतार रे बटोहिया।

४.
एक मती हरताल ताला, जहाँ पढ़ावे पंडित लाला।
पंडित लाला दिये असीस, जीओ बचवा लाख बरीस।
लाख बरीस की उमर पाई, दिल्ली से गजमोती मंगाई।
आव रे दिल्ली, आजम खाँव। आजम खाँव चलाया तीर, बचा कोई रहा न वीर।
जहाँ के तीरे चौतीस पसरी,
जय बोलो जय रामा रघुवर, सीता मैया करे रसोइया
जेवें लछुमन रामा, ताहि के जूठन काठन पा गया हनुमाना।
सोने के गढ़ लंका ऊपर कूद गया हनुमाना।

५.
बबुआ हो बबुआ, सिताब लाल बबुआ
बबुआ के माई बड़ा हई दानी,
लइकन के देख-देख भागे ली चुल्हानी।
घर में धोती टांगल बा,
बाकस में रुपेया कूदऽ ता
घर में धरबू चोर ले जाई
गुरुजी के देबू, नाम हो जाई।
बबुआ आँख मुनौना भाई,
बिना किछु लेहले चललऽ ना जाई।

६.
छाते थे भाई छाते थे,
छाते-छाते भूख लगी।
अनार की कलियाँ तोड़ लिया, बंगाली का छोकड़ा देख लिया।
धर टाँग पटक दिया, रोते-रोते घर गया।
घर का मालिक दौड़ा आया, दिल्ली-कोस पुकारते आया।
आव रे दिल्ली-आजम खाँव, आजम खाँव चलाया तीर,
बचा कोई रहा न वीर।
थर-थर काँपे जमुनापुरी,
जमुनापुरी से आया वीर, मार गया दो छैला तीर।
छैला मांगे एक छलाई, दिल्ली से गजमोती मंगाई।

७.
एक दिन सतराजीत के भाई, पहुँचे वन में जाई।
वहाँ भादो का बहार दिखलाए हुए थे
करते -करते शिकार, खुद बन गए शिकार
हाथी -घोड़ा से भी साज वे सजाए हुए थे।
सुनकर जामवन्त गुर्राया, उनको क्रोध और चढ़ि आया।
पहले बातों से बहलाए, वह शर्माए हुए था।
भारी होने लगी लड़ाई, जामवन्त को बात याद जब आई
हमको दर्शन देने आज रघुराई आए थे।