Last modified on 13 नवम्बर 2018, at 07:51

चौमुखा दिया / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

वीरबाला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:51, 13 नवम्बर 2018 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

41
चौमुखा दिया
बनकर जला मैं
तुम्हारे लिए।
42
मन के दीप
जब- जब ज्योतित
मिटे अज्ञान।
43
ज्योति तुम्हारी
मन-आँगन जगी
नैन सजल ।
44
तुम पावन
मेरी मनभावन
आत्म रूप हो।
45
ठिठुरे रिश्ते।
सुखद आँच जैसा
स्पर्श तुम्हारा
46
कोई न आया
सर्द रात ठिठुरी
तू मुझे भाया।
47
हिमानी भाव
कोई यों कब तक
रखे लगाव।
48
काँपे थे तारे
बरसे थी नभ से
बर्फीली रूई।
49
जमी हैं झीलें
अपत्र तरुदल
ठिठुरे,काँपे।
50
जग है क्रूर
तेरा सहारा सिर्फ़
जीने की आस।