भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चौराहे पर दोस्त पुराने मिल गये फिर / राज़िक़ अंसारी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चौराहे पर दोस्त पुराने मिल गये फिर
भरते भरते ज़ख़्म जिगर के छिल गये फिर

फिर हम रोए उनके आगे अपने दुख
ख़ाक मैं अपने सारे आँसू मिल गये फिर

उनसे कहना खिड़की पर अब आ जाओ
दीवानों के चाक गिरेबाँ सिल गये फिर

दिल के टूटे तार अब शायद जुड़ पाएं
कहने को तो हम तुम दोनों मिल गये फिर

छोड़ गये थे पतझड़ मैं जो लोग मुझे
उनसे कहना फूल चमन मैं खिल गये फिर