http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%9B%E0%A4%82%E0%A4%A6_30_/_%E0%A4%B6%E0%A5%83%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%B2%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8C%E0%A4%B0%E0%A4%AD_/_%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%9C&feed=atom&action=historyछंद 30 / शृंगारलतिकासौरभ / द्विज - अवतरण इतिहास2024-03-28T10:02:26Zविकि पर उपलब्ध इस पृष्ठ का अवतरण इतिहासMediaWiki 1.24.1http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%9B%E0%A4%82%E0%A4%A6_30_/_%E0%A4%B6%E0%A5%83%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%B2%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8C%E0%A4%B0%E0%A4%AD_/_%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%9C&diff=232488&oldid=prevSharda suman: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=द्विज |अनुवादक= |संग्रह=शृंगारलति...' के साथ नया पृष्ठ बनाया2017-06-29T12:33:47Z<p>'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=द्विज |अनुवादक= |संग्रह=शृंगारलति...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
<p><b>नया पृष्ठ</b></p><div>{{KKGlobal}}<br />
{{KKRachna<br />
|रचनाकार=द्विज<br />
|अनुवादक=<br />
|संग्रह=शृंगारलतिकासौरभ / द्विज<br />
}}<br />
{{KKCatBrajBhashaRachna}}<br />
{{KKCatChhand}}<br />
{{KKAnthologyBasant}}<br />
<poem><br />
मनहरन घनाक्षरी<br />
(वसंत की अनिर्वचनीय शोभा)<br />
<br />
औंरैं भाँति कोकिल, चकोर ठौर-ठौर बोले, औंरैं भाँति सबद पपीहन के बै गए।<br />
औंरैं भाँति पल्लव लिए हैं बृंद-बृंद तरु, औंरैं छबि-पुंज कुंज-कुंजन उनै गए॥<br />
औंरैं भाँति सीतल, सुगंध, मंद डोलै पौंन, ‘द्विजदेव’ देखत न ऐसैं पल द्वै गए।<br />
औंरैं रति, औंरैं रंग, औंरैं साज, औंरैं संग, औंरैं बन, औंरैं छन, औंरैं मन, ह्वै गए॥<br />
<br />
भावार्थ: इससे आगे और शोभा अनिर्वचनीय है, उसको केवल इतना ही कह सकते हैं कि और ही प्रकार के कोकिल, चकोर स्थल-स्थल पर बोलने लगे तथा और ही प्रकार के पपीहों के शब्द हो गए। तरु समूह कुछ और ही तरह पल्लवों को धारण किए हुए हैं, छवि पुंज कुछ और ही तरह प्रतिकुंज में उनए पड़ते हैं तथा और ही प्रकार की शीतल, मंद, सुगंध समीर का संचार हो रहा है। दो पल भी न बीतने पाए कि अभी रति (प्रीति) रंग, साज, संग, समय और मन सबकुछ और ही हो गए।<br />
</poem></div>Sharda suman