भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"छतरी : दो शिशु गीत / गिरीश पंकज" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गिरीश पंकज |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatBaa...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
 
पंक्ति 19: पंक्ति 19:
  
 
बरसे जब पानी, पापा को  
 
बरसे जब पानी, पापा को  
दftर तक पहुँचाती छतरी ।।
+
दफ़्तर तक पहुँचाती छतरी ।।
  
 
'''दो'''
 
'''दो'''

11:36, 16 सितम्बर 2014 के समय का अवतरण

एक

बारिश से टकराती छतरी,
इसीलिए तो भाती छतरी ।

देख बरसता पानी फौरन,
बिना कहे खुल जाती छतरी ।

फटी पुरानी जैसी भी हो,
काम बहुत है आती छतरी ।

बरसे जब पानी, पापा को
दफ़्तर तक पहुँचाती छतरी ।।

दो

ये जो अपना छाता है जी,
बड़े काम में आता है जी ।

कड़ी धूप हो या हो बारिश,
सबको यही बचाता है जी ।