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"छतरी : दो शिशु गीत / गिरीश पंकज" के अवतरणों में अंतर
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11:36, 16 सितम्बर 2014 के समय का अवतरण
एक
बारिश से टकराती छतरी,
इसीलिए तो भाती छतरी ।
देख बरसता पानी फौरन,
बिना कहे खुल जाती छतरी ।
फटी पुरानी जैसी भी हो,
काम बहुत है आती छतरी ।
बरसे जब पानी, पापा को
दफ़्तर तक पहुँचाती छतरी ।।
दो
ये जो अपना छाता है जी,
बड़े काम में आता है जी ।
कड़ी धूप हो या हो बारिश,
सबको यही बचाता है जी ।