भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

छनो भर खातिर / लक्ष्मीकान्त मुकुल

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:48, 31 जनवरी 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लक्ष्मीकान्त मुकुल |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उनुका लगे ना रहे कौनो टाट के मड़ई आ फूंस-मूंजन के खोंता

ऊ चिरई ना रहन भा कौनो फेंड़-रूख हरवाहीं से लौटत ऊ एगो मजूर रहन

भसभसा के गिरेला जइसे पुअरा के छान्हि धमका भइला से ओही तरी लूढ़ेरा गइल रहन ऊ पोखरा के पिंड़ी पर

ओह ! छनो भर खातिर ऊखी में के लुकाइल दनवा-दूत बन के देले रहीत आपन बनूक कुछऊ बन गइल रहितन ऊ आन्ही-बुनी भा खर-पतवार तनीको देरि खातिर बुला हो गइल रहीत मुँहलुकान