भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

छन-छन में अब लोगन के ईमान बदल जाता / सूर्यदेव पाठक 'पराग'

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ३ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:41, 30 मार्च 2015 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

छन-छन में अब लोगन के ईमान बदल जाता
देखत-देखत मन्दिर के भगवान बदल जाता

कइसे रात अन्हरिया भकसावन नाहीं लागे
चमचम चमकत अम्बर तक के चान बदल जाता

कुरसी पर बइठे के पहिले बात बहुत होता
मौका मिलते लोगन पर से ध्यान बदल जाता

भीतर-भीतर कीचड़ ऊपर से चन्दन गमके
दू कौड़ी के खातिर हर इन्सान बदल जाता

प्रेम-मुहब्बत पइसा-रूपया पर सब बेंच रहल
व्यापारी बन केकर ना मन-प्रान बदल जाता

बाप मजूरी करत थकल बा तन घिसिया-घिसिया
बेटा के देखीं कइसे सन्तान बदल जाता