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छपले बा / श्यामबिहारी तिवारी 'देहाती'

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उनका दिमाग में त हर घड़ी अन्हार छपले बा
गोलिया कइसे मारस ? ऊ नीचे ऊपर शेर छपले बा।
बात कइसे बूझब ? कुछउ त पढ़
मकई कइसे होई ? सँउसे खेत त जनेर छपले बा।

केहू का हुरकवला से कहीं तीतिर मिली ?
उनका मन में त हर घड़ी बटेर छपले बा।
घर में दुइए त ठहरनी, ओहू में चलता डंटा
हमनी दूनू के कवना भूत घेर-घेर छपले बा।

अपने में काटा-कूटी करीं, निमने नू बा
अरे ! अइसन नू हमरे घर में अन्हेर छपले बा।
हमरा सरकार का बदलते बदल गइल कपड़ा
सुराज के मोह त उनका अनेर छपले बा।

बाबा का ओझाइओ पर छूत के भूत ना भागल
बभनझोंझ होते रहे दोसर बभन-फेर छपले बा।
बड़की कोठी में गइनी, बइठ गइनी भुँइए
गलइचा कहाँ सूझी, आँख में त नरकट-पटेर छपले बा।

लोरिकायन-बिहुला छोड़ीं, अब अल्हा गाईं
हमार रोटी त कवनो दिलेर छपले बा।
भगवान करसु ऊ दिन कब देखब ?
अजमेर कासी कासी अजमेर छपले बा।