भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

छाता / सुखराम चौबे 'गुणाकर'

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:08, 10 जुलाई 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुखराम चौबे 'गुणाकर' |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यह छाता है सुखदाई,
मैं इसे न दूँगा भाई।

जब घर से बाहर जाता,
या बाहर से घर आता,
यह संग में आता-जाता,
रखता है सदा मिताई।

जब पानी बरसा करता,
मग चलने में जी डरता,
तब मेरी रक्षा करता,
यों होता सदा सहाई।

जब धूप कड़ी होती है,
तब तपन बड़ी होती है,
भुन सड़क पड़ी होती है,
दे छाया, करे भलाई।

यह समय पड़े पर सच्चा,
डंडे का पूरा बच्चा,
सिरहाना भी है अच्छा,
मैं क्या-क्या करूँ बड़ाई!