भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

छाये नभमंडल मैं, सलज सघन घन / लाल कवि

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

छाये नभमंडल मैं, सलज सघन घन,
कारे पीरे श्वेत रंग, धारतै रहत हैं।
'लाल' जू कहत, त्यौंही चहकि चुरैल ऐसी,
चंचला जवाल जाल, जारतै रहत हैं॥