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छा रही है जो गुलाबी खुशबू / कैलाश झा 'किंकर'

छा रही है जो गुलाबी खुशबू
लग रही है ये वफ़ा कि ख़ुशबू।

वो जो गुज़री थी यहाँ से रूहें
उससे आती थी बला-सी खुशबू।

वह तो ज़िन्दा है, रहेगा ज़िन्दा
उसमें ईमां की निराली ख़ुशबू।

शाम से रात तलक बागों में
करती मदमस्त हवाई ख़ुशबू।

उनके गेसू से निकलकर हरदम
कहती है दिल की कहानी खुशबू।

होश रहता ही नहीं है "किंकर"
सबको बेहोश बनाती ख़ुशबू।