Last modified on 17 जुलाई 2020, at 21:41

छा रही है जो गुलाबी खुशबू / कैलाश झा 'किंकर'

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:41, 17 जुलाई 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कैलाश झा 'किंकर' |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

छा रही है जो गुलाबी खुशबू
लग रही है ये वफ़ा कि ख़ुशबू।

वो जो गुज़री थी यहाँ से रूहें
उससे आती थी बला-सी खुशबू।

वह तो ज़िन्दा है, रहेगा ज़िन्दा
उसमें ईमां की निराली ख़ुशबू।

शाम से रात तलक बागों में
करती मदमस्त हवाई ख़ुशबू।

उनके गेसू से निकलकर हरदम
कहती है दिल की कहानी खुशबू।

होश रहता ही नहीं है "किंकर"
सबको बेहोश बनाती ख़ुशबू।