भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

छुपाएं सर कहां जाकर कोई छप्पर नहीं मिलता / कुमार नयन

Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:21, 3 जून 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार नयन |अनुवादक= |संग्रह=दयारे...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

छुपाएं सर कहां जाकर कोई छप्पर नहीं मिलता
मगर कहते नहीं बनता कि हमको घर नहीं मिलता।

हज़ारों लोग कहने को तो अपने हैं यहां लेकिन
मुझे ढूंढे से भी कोई मिरा परवर नहीं मिलता।

फ़क़त मेहनत से ही हासिल हुआ करती है ये दौलत
किसी के मांगने पर इल्म का गौहर नहं मिलता।

समझने में यही मुझसे हुई कितनी ग़लतफ़हमी
कि दुनिया में कोई इंसान ही बेहतर नहीं मिलता।

कहीं भी पत्थरों-घासों पे चादर तान देती है
करे क्या नींद बेचारी कि जब बिस्तर नहीं मिलता।

अबस मिलते हैं कितने लोग राहों में मगर यारब
जिसे हम ढूंढते रहते हैं वो अक्सर नहीं मिलता।

महब्बत की क़सम हमने दिलों की ख़ाक छानी है
हमारे दिल से सचमुच दिल कोई बदतर नहीं मिलता।

ज़रूरी हो गया है सोचना अल्ला क़सम इस पर
कि अब सच्चा कोई क्यों क़ौम का रहबर नहीं मिलता।