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छुपा कहां भगवान / कुलवंत सिंह

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छुपा कहां भगवान तू है छुपा कहां भगवान?
श्रद्धा, शांति, सत्य त्याग, दंभ में खोया इंसान,
नहीं झांकता मन मंदिर, भ्रम में भटक रहा इंसान,
तप, पूजा, जप का मान, भूल गया है इंसान,
छुपा कहां भगवान तू है छुपा कहां भगवान?

कहां गई वह हिंद संस्कृति जिसका था सम्मान,
कहां गई भारत सभ्यता जिसका था अभिमान,
कहां गाई लक्ष्मी देवी, जिसका था बेटी नाम,
छुपा कहां भगवान तू है छुपा कहां भगवान?

तज शील मर्यादा को, धन का करता गुणगान,
करुणा, न्याय, दया, दान का लोप हुआ है मान,
रिश्ते, नाते, परिजनों का बिलकुल रहा न ध्यान,
छुपा कहां भगवान तू है छुपा कहां भगवान?

चमक दमक में खोया, गर्व गरिमा से अनजान,
दीन का करता शोषण, अनुचित का रहा न भान,
स्नेह, कृपा, पावन प्यार, ऐसा था हिंदुस्तान,
छुपा कहां भगवान तू है छुपा कहां भगवान?

तार-तार हुआ समाज, मनुज बन गया हैवान,
अंधाधुंध सब भाग रहे, मंजिल का नही ज्ञान,
गमों में सब जी रहे, खुशी का न नामों निशान,
छुपा कहां भगवान तू है छुपा कहां भगवान?

जमीं थी जब स्वर्ग यहां, भूला जीवन का तान,
आत्म चिंतन बंद किया, लोभ लिप्सा ही अरमान,
निशा का गहन साम्राज्य, दिक्खता न कहीं ईमान,
छुपा कहां भगवान तू है छुपा कहां भगवान?

धरा तुझे पुकार रही, करो दमन बहुत शैतान,
दृष्टि, दिशा दो जीवन को, कण कण ईश समान,
अब न सताओ आ भी जाओ, दीन का सुन गान,
छुपा कहां भगवान तू है छुपा कहां भगवान?