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छू गया तन / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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136
मन हरसे
सदा सुख बरसें
घर-आँगन ।
137
कलियाँ खिलीं
खुशबू गले मिली
पंखुरी हँसी ।
138
शुभ्र चन्द्रिका
शिशु रूप लेकर
गोद आ छुपी ।
139
गुलाबी होंठ
मुस्कान थिरकी ज्यों
भोर-किरन ।
140
झरोखे भरे
आशीर्वाद बाँटते
पाखी चहके ।
141
हँसना-रोना-
लगा याद आ गई
पूर्व जन्मों की .
142
रहती सदा
ज्यों वात में सुगन्ध
बसो मन में ।
143
हारना नहीं
काँटों भरे वन में
हारेगी बाधा ।
144
उजाला तुम
हो हज़ारों दिलों का
थकना नहीं ।
145
चाँदनी खिली
तेरे हर शब्द में
निहारो ज़रा ।
146
अँधेरे कहाँ ?
उजाले बन हम
संग तुम्हारे ।
147
स्नेह-सिंचित
करती मन-प्राण
गंगा-सी तुम ।
148
याद किया था
हवा बन तुमने
हरसे रोम ।
149
छू गया तन
बन शीतल हवा ?
तेरा आँचल।
150
संताप मिटे
तन ताप दूर हो
मुस्कान खिले ।