भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

छोड़ दे तू दम्भी बातें / मनोज मानव

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:55, 4 मार्च 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनोज मानव |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGeetik...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

छोड़ दे तू दम्भी बातें, दृढ़ होंगे रिश्ते-नाते,
जंग आपसी छिड़े तो, हार जाना चाहिए.
जरा-सी बढ़ा के प्रीति, मन दूजो के ले जीत,
सदा अपनों में बैठ, बतलाना चाहिए.

हुए एक के हैं चार, टूट गए परिवार,
चार के ही चार देखे, नित परेशान हैं,
झूलते थे मिल झूले, जलते थे साँझे चूल्हे,
जिनका बच्चों को लाभ, समझाना चाहिए.

घर-घर की कहानी, नशे में लुटी जवानी,
खतरे में घिरी हुई, आन-बान-शान हैं,
बचा घर एक-आध, नित्य बढ़े अपराध,
झूम रहे युवकों को, लठियाना चाहिए.

फैल रहा अविश्वास, बैरी हुई बहू सास,
टी वी सीरियल आज, हुए बेलगाम हैं,
रिश्तों में बढ़ी हैं खाई, रोज हो रही लड़ाई,
गाँव-गाँव गली-गली, एक थाना चाहिए.

बढ़ी है या घटी शान, छोटे हुए परिधान,
फटे हुए कपड़ों का, फैशन भी आम है,
लाज अनमोल जान, अपने को पहचान,
बहू-बेटियों को कुछ, शरमाना चाहिए.

जहाँ देखिए इंसान, बना हुआ है शैतान,
लाल-लाल रक्त से जो, रँगें हुए हाथ हैं,
दिया दान भगवान, रच मानव महान,
सच सिद्ध कर यह, दिखलाना चाहिए.
+++++++++++++++++++++
आधार छन्द-मनहर घनाक्षरी (31 वर्णिक मापनीमुक्त)
विधान-16, 15 वर्णों पर यति अनिवार्य, 8, 8, 8, 7 पर यति उत्तम, अंत में गा।