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चोर के भरतार, तू बीड़ी जला।
'''सारिका में सन 80 के आसपास प्रकाशित पहली ग़ज़ल इसके पीछे एक मज़ेदार कहानी है। उन दिनों रमेश बतरा, महावीर प्रसाद जैन और अवध नारायण मुदगल दिल्ली में लारेंस रोड पर रहते थे। तीनों हीं सारिका में काम करते ।थे थे। हम मित्र लोग आते-जाते बने रहते थे।''''''सब्ज़ी मित्र लोग घर पर बना लिया करते थे। रोटी की परेशानी थी, जो पास में एक तन्दूर वाले के पास से लानी पड़ती थी। वहाँ जाने में सब कतराते थे। ऐसे ही एक शाम इसी बात पर झगड़ा चल रहा था कि तभी मेरे मुहं से निकला -- छोड़ रोटी यार, तू बीड़ी जला।''''''रमेश बोले -- ये तो ग़ज़ल का मिसरा हो गया। बस, फिर क्या था, मैंने ग़ज़ल बना डाली।'''
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